बुधवार, 22 जुलाई 2009

सावन बदल गया है

सावन नही रहा भीगा भीगा सा
सावन नही रहा गीला गीला सा
फुहारों को सावन तरस रहा है
सावन बदल गया है

मंद है बादलों का शोर
मोर नहीं नाच रहे चारो ओ़र
कारे बादलों को सावन तरस गया है
सावन बदल गया है

थम गयी है किसानों की थाप
खो गई है मेंढकों का आलाप
पानी के रंग को सावन तरस गया है

सावन बदल गया है

बैठे हैं बच्चे कागज़ की नाव लिए
बैठी है गोरी मन में अरमान लिए
झूलों को सावन तरस गया है
सावन बदल गया है


कैसे बंधेगी कलाई पर राखी
कैसे सजेगी कुमारी के फूलों की टोकरी
सपनों को आँखे तरस गया है
सावन बदल गया है

3 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी कविता मुझे बहुत पसंद आई ...
    यहाँ फरीदाबाद में कल ही बारिश हुई

    मेरी कलम - मेरी अभिव्यक्ति

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  2. kavita ....kuch khass aur kuch alag ...phir bhi ...Saawan aur barish se jhure ehshaas ....yaad dilata hai.....

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  3. लेने को अंगडाई झमाझम बारिश में,
    दिल तरस गया है
    सावन बदल गया है....

    बढिया कविता। मौसम के मिज़ाज के मुताबिक
    पीयूष

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